यादों के झरोखे से " इंटरनेट इस्तेमाल करने का पहला अनुभव "
दोस्तों ! अब तो लगभग सभी जानते हैं कि इंटरनेट हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है । याद तो होगा ही आप सभी को कि कुदरत ने जब अपना एक प्रकोप कोरोना महामारी के रूप दिखाया था उस वक्त यह इंटरनेट ही था जिसने दूर रह रहे लोगों की चिंताओं को कम करने का काम भी किया था ।
दोस्तों ! आज यादों के झरोखे के माध्यम से जब आप सभी के समक्ष हाजिर होने का मौका मिला तो इंटरनेट की बातें लेकर आप सब से मिलने चली आई। इंटरनेट जरूरत हर घर में तब अधिक महसूस हुई जब कोरोना काल में स्कूल, काॅलेज और कोचिंग संस्थानों को बंद कर दिया गया और पढ़ाई का जरिया ऑनलाइन क्लासेज हो गया। छोटे - बड़े सभी पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को इंटरनेट के जरिए ही पढ़ाई करना और करवाना मजबूरी बन कर हम सबके समक्ष आ खड़ी हुई थी क्योंकि इसके अलावा शिक्षा प्राप्त करने का और कोई विकल्प समझ में ही नहीं आ रहा था। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए लिया गया यह कदम सराहनीय भी था क्योंकि इसके जरिए जहां बच्चे अपने स्कूल कॉलेज से जुड़े रहे वहीं पर माता-पिता भी अपने बच्चों के पढ़ाई को लेकर थोड़े कम चिंतित रहे, यदि उनकी पढ़ाई एकदम से बंद हो जाती जैसे कि स्कूल कॉलेज बंद हो गए थे ऐसी स्थिति में बच्चों के भविष्य की चिंता भी महामारी के समय आई स्वास्थ्य की चिंताओं के साथ माता - पिता के साथ- साथ परिजनों में भी शामिल होती।
दोस्तों! उस वक्त भी इंटरनेट हमारी जरूरत थी और बढ़ते समय के साथ साथ यह जरूरत हमारी निजी जिंदगी में एक आवश्यकता के रूप में हर किसी के जीवन में प्रवेश कर चुकी है।अब बात करती हूॅं अपने इंटरनेट इस्तेमाल करने के पहले अनुभव की । बात २०१२ की है । मेरी माउंट लिट्ररा जी स्कूल हजारीबाग में बतौर शिक्षिका नियुक्ति हुई थी, यही कोई १५-२० दिन हुए होंगे । उस शनिवार बच्चों की छुट्टी थी लेकिन हम सभी शिक्षक - शिक्षिकाओं को स्कूल जाना था । मुझे लेने स्कूल की गाड़ी भी आई थी । ऐसे मैं रोज स्कूल के बच्चों की गाड़ी में जाने वाली आज अकेले ही गाड़ी से स्कूल पहुंची थी । सभी अपने - अपने स्कूल के ही व्यक्तिगत कामों में लगें हुए थे । अगले महीने परीक्षा होने वाली थी इसलिए सभी प्रश्न पत्र बनाने के काम में लगे थे । मुझे भी अपने बिषय का प्रश्न पत्र बनाने के लिए कहा गया था । मुझे उस दिन कोई काम नहीं था क्योंकि प्रश्न पत्र तो मैंने दो दिन पहले ही बना लिए थे । समय निकालना मुश्किल हो गया था । क्या करूं सोचते हुए मैं कंप्यूटर लैब में पहुंची । वहां पर कंप्यूटर सर जिनका नाम नितीश सर था उन्होंने मुझे देखते ही अपने लैब के भीतर आने के कहा । मैं भी अंदर इसलिए चली गई क्योंकि मैं चाहती थी कि सर मेरे पन्ने पर बनाएं प्रश्न पत्र को कंप्यूटर में टाइप कर उसे प्रिंटर से निकाल कर एक प्रति मुझे दे दें। सभी शिक्षकों को मैंने ऐसा करते देखा था इसलिए भी उस दिन मेरे कदम कंप्यूटर लैब की तरफ बढ़ चले थे। नितिश सर ही प्रश्न पत्र को टाइप करते हैं यह मुझे मालूम था इसलिए मैंने अपने बिषय के प्रश्न पत्र को टाइप करने के लिए उनसे कहा । आधे घंटे बाद तक मेरा काम हो गया । सर से पहले भी बात हुई थी लेकिन उस दिन बातें कुछ अधिक ही हुई साथ ही काम भी होता रहा । इतने में ऋचा मैम मेरे पास आकर बैठ गई । उनका काम भी खत्म हो चुका था और उन्हें भी बस टाइम पास ही करना था । उन्होंने मुझसे कहा :- " मैम! आपका फेसबुक अकाउंट किस नाम से है ?
दोस्तों! मैं फेसबुक के बारे में जानती तो थी लेकिन उसमें अकाउंट बनाने से डरती थी । मैंने ऋचा मैम के सामने अपना डर खुलकर बता दिया । उस दिन कंप्यूटर लैब में ही नितिश सर और ऋचा मैम दोनों ने पहले तो मुझे समझाया उसके बाद मेरा फेसबुक अकाउंट भी बना दिया। उस वक्त तो मुझे ज्यादा कुछ मालूम नहीं था इसलिए मैंने उनसे सिर्फ उसे इस्तेमाल करना सीख लिया । छुट्टी जब हुई हम तीनों लैब से निकल रहें थे तब नितिश सर ने कहा कि मैंने अभी आपके मोबाईल नम्बर और जो पासवर्ड आपने बताया उससे आपका अकाउंट तो बना दिया है लेकिन आप कल ही अपना पासवर्ड बदल लेना । यह आपके लिए ठीक रहेगा । उन्होंने मुझे इसी वक्त उसे बदलना भी समझा दिया था और मैंने भी मन ही मन तय कर लिया था कि घर जाकर इसे बदल दूंगी।
दोस्तों! मेरे पास उस वक्त सैमसंग का छोटा वाला स्क्रीन टच मोबाइल था । उस पर ही स्कूल के वाई फाई से नितिश सर ने मुझे फेसबुक चलाना बता दिया था । मैं एक दिन में ही बहुत कुछ जान गई थी और खुश भी थी कि एक नई बात मुझे शिक्षा के मंदिर में अपने सहकर्मियों के द्वारा सीखने को मिली । सच कहूं तो यही था इंटरनेट इस्तेमाल करने का मेरा पहला अनुभव । उसके बाद तो एक-दो दिन के बाद ही मेरे फ़ोन में व्हाट्सएप भी डाउनलोड हो गया था क्योंकि स्कूल के सभी शिक्षक शिक्षिकाओं को एक अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाना था जिसमें सभी का रहना अनिवार्य था इसीलिए सौरव सर जो इसके इंचार्ज थे, उन्होंने पहले तो मेरा व्हाट्सएप अकाउंट खुलवाया उसके बाद इसे चलाना भी समझा दिया था। फेसबुक तो मैं पहले ही एक सप्ताह से चला रही थी और बहुत कुछ सीख भी चुकी थी इसीलिए व्हाट्सएप चलाने में मुझे खास कोई परेशानी नहीं हुई थी।
दोस्तों! पहले मैं २८ दिन का इंटरनेट पैक भरवाती थी और एक जी.बी मिलता था, उसके अलावा स्कूल के वाईफाई से भी काम चल जाता था। बहुत सुनहरा दिन था, नई-नई चीजें उस दौरान सीखने को मिली थी। अब तो एक दिन में ही डेढ़ जीबी या दो जी.बी मिल जाता है। आज मेरा इंटरनेट पैक भरा हुआ है तभी तो आप सबसे मिलने आ सकी हूॅं । यह इंटरनेट नहीं होता तो क्या मेरी बात आप सभी पढ़ रहे होते ? नहीं ना! यह नहीं होता तो हम आपस में बात भी नहीं कर पा रहे होते। यह नहीं होता तो लेखन जगत का इतना सफर शायद में कभी भी तय नहीं कर पाती। शायद! मेरे दिल के अल्फाज मेरे घर में रखे चंद कागजों में ही सिमट कर रह जाते। बहुत कुछ इस इंटरनेट ने सिखाया है और आगे भी सीखती ही रहूंगी क्योंकि मेरे सीखने की ललक आज भी उसी तरह बरकरार है जिस तरह २०१२ में थी।
दोस्तों! अभी के लिए इतना ही । अब चलती हूॅं । फुर्सत मिलते ही फिर से यादों के झरोखे से निकली याद के साथ मुलाकात होगी तब तक के लिए यही कहूंगी 👇।
🤗🤗 आप सब अपना ख्याल रखना, खुश रहना और सबसे महत्वपूर्ण बात हमेशा हंसते - मुस्कुराते रहना 🤗🤗
गुॅंजन कमल 💗💕💓
Varsha_Upadhyay
16-Dec-2022 06:59 PM
बहुत खूब
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Mahendra Bhatt
16-Dec-2022 05:35 PM
शानदार
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Sachin dev
12-Dec-2022 07:33 PM
Lajavab
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